
अत्राहैवं कश्चित् सत्ता या सा निरङ्कुशा भवतु ।
परपक्षे निरपेक्षा स्वात्मनि पक्षेऽवलम्बिनी यस्मात् ॥16॥
अन्वयार्थ : यहां पर कोई कहता है कि जो सत्ता है वह स्वतन्त्र ही है । क्योंकि वह अपने स्वरूप में ही स्थित है । परपक्ष से सर्वथा निरपेक्ष है। अर्थात सत्ता का कोई प्रतिपक्ष नहीं है ।