तन्न यतो हि विपक्ष: कश्चित्सत्त्वस्य वा सपक्षोपि ।
द्वावपि नयपक्षौ तौ मिथो विपक्षौ विवक्षितापेक्षात्‌ ॥17॥
अन्वयार्थ : शंकाकार का उपर्युक्त कहना ठीक नहीं है । क्योंकि सत्ता का कोई सपक्ष और कोई विपक्ष अवश्य है । दोनों ही नय पक्ष हैं, और वे दोनों ही नय पक्ष विवक्षा वश परस्पर में विपक्षपने को लिये हुए हैं ।