
अत्राप्याह कुदृष्टि र्यदि नय पक्षौ विवक्षितौ भवतः ।
का नः क्षतिर्भवेतामन्यतरेणेह सत्त्वसंसिद्धि: ॥18॥
अन्वयार्थ : यहां पर फिर मिथ्यादृष्टि कहता है कि यदि नय पक्ष विवक्षित होते हैं , तो होओ, हमारी कोई हानि नहीं है । सत्ता की स्वतन्त्र सिद्धि एक नय से ही हो जायगी ।