
एतेन विना चैकं द्रव्यं सम्यक् प्रपश्यतश्चापि ।
को दोषो यद्भीतेरियं व्यवस्थैव साधुरस्त्विति चेत् ॥27॥
अन्वयार्थ : ऊपर कही हुई व्यवस्था का तो प्रत्यक्ष नहीं है; केवल एक द्रव्य ही भली-भांति दिख रहा है, इस अवस्था में कौनसा दोष आता है कि जिसके डर से उपर्युक्त व्यवस्था ही ठीक मानी जावे ।