+ उत्तर - उपर्युक्त व्यवस्था न मानने पर द्रव्य को देशहीन या एक-प्रदेशी मानना सदोष -
देशाभावे नियमात्सत्त्वं द्रव्यस्य न प्रतीयेत ।
देशांशाभावेपि च सर्वं स्यादेकदेशमात्रम् वा ॥28॥
तत्रासत्त्वे वस्तुनि न श्रेयसास्य साधकाभावात्‌ ।
एवं चैकांशत्वे महतो व्योम्नोऽप्रतयिमानत्वात्‌ ॥29॥
किञ्चैतदंशकल्पनमपि फलवत्स्याद्यतोनुमीयेत ।
कायत्वमकायत्वं द्रव्याणामिह महत्वममहत्वम्‌ ॥30॥
अन्वयार्थ : यदि देशहीन माना जावे तो द्रव्य की सत्ता का ही निश्चय नहीं हो सकेगा । और देशांशों के न मानने पर सर्व द्रव्य एक देशमात्र हो जायगा ।
वस्तु को असत् (अभाव) रूप स्वीकार करना ठीक नहीं है । क्योंकि वस्तु असत्‌ स्वरूप सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण नहीं है । दूसरा यह भी अर्थ हो सकता है कि वस्तु को अभाव रूप मानने से वह किसी कार्य को सिद्ध न कर सकेगी । इस प्रकार वस्तु में अंश भेद न मानने से आकाश की महानताका ज्ञान नहीं हो सकेगा ।
अंश कल्पना से एक तो छोटे बड़े का भेद ज्ञान ऊपर बतलाया गया है । दूसरा अंश कल्पना से यह भी फल होता है कि उससे द्रव्यों में कायत्व और अकायत्वका अनुमान कर लिया जाता है इसी प्रकार छोटे और बड़े का भी अनुमान कर लिया जाता है ।