+ गुण, गुणी से जुदा नहीं है, दृष्टांत -
तेषामात्मा देशो नहि ते देशात्पृथक्त्वसत्ताका: ।
नहि देशे हि विशेषाः किन्तु विशेषेश्च तादृशो देशः ॥39॥
अत्रापि च संदृष्टि: शुक्लादीनामियं तनुस्तन्तु: ।
नहि तन्‍तौ शुक्लाद्याः किन्तु सिताद्यैश्च तादृशस्तन्तुः ॥40॥
अन्वयार्थ : उन गुणों का समूह ही देश (अखण्ड-द्रव्य) है । वे गुण देश से भिन्न अपनी सत्ता नहीं रखते हैं और ऐसा भी नहीं कह सकते कि देश में गुण (विशेष) रहते हैं किन्तु उन विशेषों (गुणों) के मेल से ही वह देश कहलाता है ।
गुण और गुणी में अभेद है, इसी विषय में तन्तु ( डोरे ) का दृष्टान्त है । शुक्ल गुण आदि का शरीर ही तन्तु है । शुक्लादि गुणों को छोड़कर और कोई वस्तु तंतु नहीं है और न ऐसा ही कहा जा सकता है कि तन्तु में शुक्लादिक गुण रहते हैं, किन्तु शुक्लादि गुणों के एकत्रित होने से ही तन्तु बना है ।