+ शंकाकार - देश और देशांशों को भिन्न और युतसिद्ध क्यों न माना जाय ? -
अथ चेद्भिन्नो देशो भिन्ना देशाश्रिता विशेषाश्च ।
तेषामिह संयोगाद्द्रव्यं दण्डीव दण्डयोगाद्वा ॥41॥
अन्वयार्थ : यदि देश को भिन्न समझा जाय और देश के आश्रित रहने वाले विशेषों को भिन्न समझा जाय, तथा उन सबके संयोग से द्रव्य कहलाने लगे । जिस प्रकार पुरुष भिन्न है, दण्ड (डंडा) भिन्न है, दोनों के संयोग से दण्डी कहलाने लगता है तो -