+ शंकाकार - गुण-गुणी में सर्वथा अद्वैत क्यों न माना जाय ? -
एकत्वं गुणगुणिनो: साध्यं हेतोस्तयोरनन्यत्वात्‌ ।
तदपि द्वैतमिव स्यात्‌ किं तत्र निवन्धनं त्वितिचेत्‌ ॥46॥
अन्वयार्थ : गुण, गुणी दोनों ही एक हैं क्‍योंकि वे दोनों ही भिन्न सत्तावाले नहीं हैं । यहां पर अभिन्न सत्ता रूप हेतु से गुण, गुणी में एकपना सिद्ध किया जाता है, फिर भी क्‍या कारण कि अखण्ड पिण्ड होने पर भी द्रव्य में द्वैत भावसा प्रतीत होता है ?