
देशच्छेदो हि यथा न तथा छेदो भवेद्गुणांशस्य ।
विष्कंभस्य विभागात्स्थूलो देशस्तथा न गुणभागः ॥56॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार देश के छेद होते हैं, उस प्रकार गुणों के छेद नहीं होते । देश के छेद विष्कंभ क्रम से होते हैं और देश एक मोटा पदार्थ है । गुण इस प्रकार का नहीं है और न उसके छेद ही ऐसे होते हैं किन्तु तरतम रूप से होते हैं ।