तन्नैवं फलवत्त्वाद् द्रव्यादेशादवस्थितं वस्तु ।
पर्यायादेशादिदमनवस्थितमिति प्रतीतत्त्वात् ॥65॥
अन्वयार्थ : ऊपर जो शंका की गई है वह ठीक नहीं है । द्रव्य और पर्याय दोनों का ही निरूपण आवश्यक है । द्रव्य की अपेक्षा से वस्तु नित्य है । पर्याय की अपेक्षा से वस्तु अनित्य है । इस बात की प्रतीति दोनों के कथन से ही होती है ।