+ आशंका -
यदि पुनरेवं न भवति भवति निरंशं गुणांशवद्द्रव्यम्‌ ।
यदि वा कीलकवदिदं भवति न परिणामि वा भवेत् क्षणिकम् ॥68॥
अथचेदिदमाकूतं भवन्त्वनन्ता निरंशका अंशाः ।
तेषामपि परिणामो भवतु समांशो न तरतमांशः स्यात्‌ ॥69॥
अन्वयार्थ : यदि ऊपर कही हुई द्रव्य, गुण, पर्याय की व्यवस्था न मानी जाय, और गुणांश की तरह निरंश द्रव्य माना जाय, अथवा उस निरंश द्रव्य को परिणामी न मानकर कूटस्थ (लोहे का पीटने का एक मोटा कीला होता है जो कि लुहारों के यहां गढ़ा रहता है) की तरह नित्य माना जाय, अथवा उस द्रव्य को सर्वथा क्षणिक ही माना जाय, अथवा उस द्रव्य के अनन्त निरंश अंश मानकर उन अंशों का समान रूप से परिणमन माना जाय, तरतम रूप से न माना जाय तब क्‍या दोष होगा ?