+ कारक और आधाराधेय की भिन्नता-अभिन्नता दृष्टांत सहित -
यद्यपि भिन्नोऽभिन्नो दृष्टान्तः कारकश्च भवतीह ।
ग्राह्यस्तथाप्यभिन्नो साध्ये चास्मिन् गुणात्मके द्रव्य ॥78॥
भिन्नोप्यथ दृष्टान्‍तो भित्तौ चित्रम् यथा दधीह घटे ।
भिन्न: कारक इति वा कश्चिद्धनवान् धनस्य योगेन ॥79॥
दृष्टान्तश्चाभिन्नो वृक्षे शाखा यथा गृहे स्तम्भः ।
अपि चाभिन्न: कारक इति वृक्षोऽयं यथा हि शाखावान् ॥80॥
अन्वयार्थ : यद्यपि दृष्टान्त और कारक भिन्न भी होते हैं और अभिन्न भी होते हैं । यहां गुण समदायरूप द्रव्य की सिद्धि में अभिन्न दृष्टान्त और अभिन्न ही कारक ग्रहण करना चाहिये । खुलासा आगे किया जाता है ।
आधाराधेय की भिन्नता का दृष्टान्त इस प्रकार है कि जैसे भित्ति में चित्र होता है अथवा घडे में दही रखा है । भित्ति भिन्न पदार्थ है और उस पर खिंचा हुआ चित्र दूसरा पदार्थ है । इसी प्रकार घट दूसरा पदार्थ है और उसमें रक्खा हुआ दही दूसरा पदार्थ है, इसलिये ये दोनों ही दृष्टान्त आधाराधेय की भिन्नता में है । भिन्न कारक का दृष्टान्त इस प्रकार है -जैसे कोई आदमी धन के निमित्त से धनवाला कहलाता है । यहां पर धन दूसरा पदार्थ है और पुरुष दूसरा पदार्थ है। धन और पुरुष का स्व-स्वामि सम्बन्ध कहलाता है । यह स्व-स्वामि सम्बन्ध भिन्नता का है ।
आधार-आधेय की अभिन्नता में दृष्टान्‍त इस प्रकार है, जैसे वृक्ष में शाखा अथवा घर में खम्भा । कारक की अभिन्नता में दृष्टान्त इस प्रकार है जैसे- यह वृक्ष शाखावाला है ।