तन्न यतः समुदायो नियतं समुदायिन: प्रतीतत्त्वात् ।
व्यक्तप्रमाणसाधितसिद्धत्वाद्वा सुसिद्ध दृष्टान्तात्‌ ॥82॥
स्पर्शरसगन्धवर्णा लक्षणभिन्ना यथा रसालफले ।
कथमपि हि पृथक्कर्तुं न तथा शक्‍यास्त्वखण्डदेशत्वात्‌ ॥83॥
अन्वयार्थ : उपर्युक्त शंका ठीक नहीं है, क्योंकि समुदाय नियम से समुदायी का होता है । यह बात प्रसिद्ध प्रमाण से सिद्ध की हुई है और प्रसिद्ध दृष्टान्त से भी यह बात सिद्ध होती है ।
यद्यपि आम के फल में स्पर्श, रस, गंध और रूप भिन्न-भिन्न हैं क्‍योंकि इनके लक्षण भिन्न-भिन्न हैं तथापि सभी अखण्डरूप से एकरूप हैं किसी प्रकार जुदे-जुदे नहीं किये जा सकते ।