
उत्पाद्स्थितिभंगैर्युक्तं सद्द्रव्यलक्षणं हि यथा ।
एतैरेव समस्तै: पृक्तं सिद्धेत्समं न तु व्यस्तैः ॥86॥
अन्वयार्थ : पहले जो द्रव्य का लक्षण 'सत्' कहा गया है वह सत् उत्पाद, स्थिति, भंग, इन तीनों से सहित ही द्रव्य का लक्षण है । इतना विशेष है कि इन तीनों का अस्तित्व भिन्न-भिन्न काल में नहीं होता है, किन्तु एक ही काल में होता है ।