
अयमर्थ: प्रकृतार्थो ध्रौव्योत्पादव्ययास्त्रयश्चांशाः ।
नाम्ना सदिति गुणः स्यादेकोऽनेके त एकश: प्रोक्ता: ॥87॥
अन्वयार्थ : इस प्रकरण का यह अर्थ है कि उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य, ये तीनों ही अंश, एक सत् गुण के हैं इसलिये इन तीनों को ही समुदाय रूप से सन्मात्र कह देते हैं और क्रम से वे तीनों ही जुदे-जुदे अनेक हैं ।