+ वस्तु को परिणामी न मानने में दोष -
नहि पुनरुत्पादस्थितिभंगमयं तद्विनापि परिणामात्‌ ।
असतो जन्मत्त्वादिह सतो विनाशस्य दुर्निवारत्वात्‌ ॥90॥
अन्वयार्थ : यदि बिना परिणाम के ही वस्तु को उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य स्वरूप माना जाय तो असत् की उत्पत्ति और सत् का विनाश अवश्यंभावी होगा ।