
तद्दर्शनम् यथा किल नित्यत्त्वस्य च गुणस्य व्याप्तिः स्यात् ।
गुणवद्द्रव्यम् च स्यादित्युक्ते ध्रौव्यवत्पुन: सिद्धम् ॥99॥
अन्वयार्थ : दोनों लक्षणों के विषय में खुलासा इस प्रकार है कि नित्यता और गुण की व्याप्ति है अर्थात् गुण कहने से नित्यपने का बोध होता है इसलिये 'गुणवान् द्रव्य है' ऐसा कहने से ध्रौव्यवान् द्रव्य सिद्ध होता है ।