अपि च गुणा: संलक्ष्यास्तेषामिह लक्षणम् भवेत् ध्रौव्यम् ।
तस्माल्लक्ष्यम् साध्यं लक्षणमिह साधनं प्रिसद्धत्वात्‌ ॥100॥
अन्वयार्थ : दूसरे शब्दों में यह कहा जाता है कि गुण लक्ष्य हैं, ध्रौव्य उनका लक्षण है इसलिये यहां पर लक्ष्य को साध्य बनाया जाता है और लक्षण को साधन बनाया जाता है ।