पर्यायाणामिह किल भङ्गोत्पादद्वयस्य वा व्याप्ति: ।
इत्युक्ते पर्ययवद्‌ द्रव्यं सृष्टिव्ययात्मकं वा स्यात्‌ ॥101॥
लक्ष्यस्थानीया इति पर्यायाः स्युः स्वभाववन्तश्च ।
तेषां लक्षणमिव वा स्वभाव इव वा पुनर्व्ययोत्पादम्‌ ॥102॥
अन्वयार्थ : उसी तरह यहां पर पर्यायों की नियम से व्यय और उत्पाद के साथ व्याप्ति है इसलिए पर्यायवाला द्वव्य है ऐसा कहने पर उत्पाद-व्यय वाला द्रव्य सिद्ध होता है ।
दूसरे पर्यायें लक्ष्य के स्थानापन्न और स्वभाववान्‌ प्राप्त होती हैं तथा उनके लक्षण और स्वभाव के स्थानावन्न व्यय और उत्पाद प्राप्त होते हैं ।