
ननु नित्या हि गुणा अपि भवन्त्वनित्यास्तु पर्यया: सर्वे ।
तत्किं द्रव्यवदिह किल नित्यानित्यात्मकाः गुणा: प्रोक्ताः ॥115॥
अन्वयार्थ : जब कि गुण नित्य होते हैं और सभी पर्यायें अनित्य होती हैं तब फिर यहां पर गुणों को पर्याय के समान नित्यानित्यात्मक क्यों कहा है ?