
ननु तदवस्थो हि गुण: किल तदवस्थान्तरं हि परिणाम: ।
उभयोरन्तर्वर्तित्वादिह पृथगेतदेवमिदमिति चेत् ॥118॥
अन्वयार्थ : गुण तो सदा एक-सा रहता है और परिणाम सदा बदलता रहता है किन्तु इन दोनों के मध्य में रहनेवाला होने के कारण द्रव्य इनसे भिन्न है, यदि ऐसा माना जाय तो क्या हानि है ?