
ननु केवलं प्रदेशाद्रव्यं देशाश्रया विशेषास्तु ।
गुणसंज्ञका हि तस्माद्भवति गुणेभ्यश्च द्रव्यमन्यत्र ॥124॥
तत एव यथा सुघटं भङ्गोत्पादध्रुवत्रयं द्रव्ये ।
न तथा गुणेषु तत्स्यादपि च व्यस्तेषु वा समस्तेषु ॥125॥
अन्वयार्थ : केवल प्रदेश ही द्रव्य कहलाते हैं और देश के आश्रय से रहनेवाले विशेष ही गुण कहलाते हैं, अत: गुणों से द्रव्य भिन्न सिद्ध होता है ।
इसलिये उत्पाद, व्यय और धौव्य ये तीनों जैसे द्रव्य में अच्छी तरह से घट जाते हैं वैसे पृथक्-पृथक् गुणों में या मिले हुए सब गुणों में नहीं घट सकते हैं ।