
ननु चैवं सति नियमादिह पर्याया भवन्ति यावन्तः ।
सर्वे गुणपर्याया वाच्या न द्रव्यपर्या: केचित् ॥132॥
अन्वयार्थ : यदि गुणों का समुदाय ही द्रव्य कहलाता है तो द्रव्य में जितनी भी पर्यायें होंगी वे सब नियम से गुणपर्याय ही कही जानीं चाहिये, द्रव्य पर्याय किसी को भी नहीं कहना चाहिये ।