+ शंका--सहभू शब्द का 'जो द्रव्य के साथ मिलकर रहें' अर्थ क्यों नहीं करें? -
तन्न यतो हि गुणेभ्यो द्रव्यं पृथगिति यथा निषिद्धत्वात् ॥140॥
ननु चैवमतिव्याप्तिः पर्यायेष्वपि गुणानुषंगत्वात् ।
पर्याय: पृथगिति चेत्सर्वं सर्वस्य दुर्निवारत्वात् ॥141॥
अनुरित्यव्युच्छिन्नप्रवाहरूपेण वर्तते यद्वा ।
अयतीत्ययगत्यर्थाद्धातोरन्वर्थतोऽन्वयं द्रव्यम्‌ ॥142॥
सत्ता सत्त्वं सद्वा सामान्यं द्रव्यमन्वयो वस्तु ।
अर्थो विधिरविशेषादेकार्थवाचका अमी शब्दाः ॥143॥
अयमन्वयोऽस्ति येषामन्वयिनस्ते भवन्ति गुणवाच्या: ।
अयमर्थो वस्तुत्वात् स्वत: सपक्षा न पर्ययापेक्षा: ॥144॥
अन्वयार्थ : जो द्रव्य के साथ मिलकर होते हैं वे सहभू कहलाते हैं, यदि 'सहभू' शब्द का इस प्रकार व्युत्पत्ति अर्थ किया जाय तो क्या आपत्ति है ? यह कहना ठीक नहीं है, क्‍योंकि गुणों से द्रव्य पृथक्‌ हैं इसका पहले ही निषेध कर आये हैं । दूसरे जो द्रव्य के साथ होते हैं वे गुण हैं यदि गुण का इस प्रकार लक्षण किया जाता है तो अतिव्याप्ति दोष आता है, क्योंकि इस लक्षण के अनुसार पर्यायें भी गुण ठहरती हैं । अब यदि इस दोष का वारण करने के लिये पर्यायों को पृथक् माना जाता है तो सर्व-संकर दोष का निवारण करना कठिन हो जाता है इसलिये 'जो द्रव्य के साथ मिलकर होते हैं वे सहभू कहलाते हैं' सहभू शब्द का यह अर्थ न करके पूर्वोक्त अर्थ करना ही ठीक है ।
अन्वय शब्द में 'अनु' यह पद अव्युच्छिन्न प्रवाहरूप अर्थ का द्योतक है और 'अय' धातु का अर्थ गमन करना है, इसलिये अन्वय शब्द का सार्थक अर्थ द्रव्य होता है ।
इस हिसाब से सत्ता, सत्व, सत्‌ , सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, अर्थ, विधि -- ये सब शब्द सामान्यरूप से एक ही अर्थ के वाचक ठहरते हैं ।
इस प्रकार पहले जो अन्वय का अर्थ किया है वह गुणों में घटित होता है इसलिये गुण अन्वयी कहलाते हैं । सारांश यह है कि वस्तु का स्वभाव होने से गुण स्वतः सपक्ष अर्थात्‌ स्वत: सिद्ध हैं, उन्हें पर्यायों की अपेक्षा नहीं करनी पड़ती है ।