+ शंका -- गुणों में भी व्यतिरेक संभव है -
ननु च व्यतिरेकित्वं भवतु गुणानां सदन्वयत्वेऽपि ।
तदनेकत्वप्रसिद्धौ भावव्यतिरेकतः सतामिति चेत्‌ ॥145॥
अन्वयार्थ : यद्यपि गुणों में सत्ता का अन्वय पाया जाता है तो भी उनमें व्यतिरेकीपना होना चाहिये, क्योंकि वे अनेक हैं, इसलिये उनमें भाव व्यतिरेक बन जाता है ।