
तन्न यतोऽस्ति विशेष: सदंशधर्मे द्वयोः समानेऽपि ।
स्थूलेष्विव पर्यायेष्वन्तर्लीनाश्च पर्यया: सूक्ष्मा: ॥171॥
तत्र व्यतिरेकः स्यात् परस्पराभावलक्षणेन यथा ।
अंशविभाग: पृथगिति सदृशांशानां सतामेव ॥172॥
तस्मात् व्यतिरेकित्वं तस्य स्यात् स्थूलपर्ययः स्थूलः ।
सोऽयं भवति न सोऽयं यस्मादेतावतैव संसिद्धि: ॥173॥
विष्कंभ:क्रम इति वा क्रमः प्रवाहस्य कारणं तस्य ।
न विवक्षितमिह किञ्चित्तत्र तथात्वं किमन्यथात्वं वा ॥174॥
क्रमवर्तित्वं नाम व्यतिरेकपुरस्सरं विशिष्टं च ।
स भवति भवति न सोऽयं भवति तथाथ च तथा न भवतीति ॥175॥
अन्वयार्थ : यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि यद्यपि दोनों में पर्यायधर्म समान है तथापि यह विशेषता है कि स्थूलरूप से प्रतिभासित होनेवाली पर्यायों में सूक्ष्म पर्यायें अन्तर्लीन हैं ।
व्यतिरेक वहाँ होता है जहाँ द्रव्यों के सदृश अंशों में परस्पर के अभावरूप से प्रथक्-प्रथक् अंशविभाग किया जाता है ।
अतएव जो पर्याय स्थूल से भी स्थूल है व्यतिरेकीपना उसी में घटित होता है, क्योंकि 'वह यह है' और 'वह यह नहीं है' इतने मात्र से ही उसकी सिद्धि होती है ।
तथा क्रम विष्कम्भ को कहते हैं या जो पर्यायजात के प्रवाह का कारण है वह भी क्रम कहलाता है। पर्यायों में तथात्व है या अन्यथात्व, क्रम में यह कुछ भी विवक्षित नहीं है ।
किन्तु जो क्रमवर्तीपना व्यतिरेक पूर्वक होता है उसमें 'यह वह है किन्तु वह नहीं है? अथवा यह वैसा है किन्तु वैसा नहीं है' यह विशेषता अवश्य पाई जाती है ।