
ननु भवतु वस्तु नित्यं गुणाश्च नित्या भवन्तु वार्धिरिव ।
भावा: कल्लोलादिवदुत्पन्नध्वंसिनो भवन्त्विति चेत् ॥211॥
अन्वयार्थ : यदि ऐसा माना जाय कि द्रव्य और गुण दोनों ही समुद्र के समान नित्य रहे आवें तथा पर्यायें तरंगों के समान उत्पन्न होती रहें और नष्ट होती रहें, तो क्या हानि है ?