तन्न यतोऽनेकान्तो बलवानिह खलु न सर्वथैकान्त: ।
सर्वं स्यादविरुद्धं तत्पूर्वं तद्विना विरुद्धं स्यात्‌ ॥227॥
केवलमंशानामिह नाप्युत्पादो व्ययोपि न ध्रौव्यम् ।
नाप्यंशिनस्रयं स्यात्‌ किमुतांशेनांऽशिनो हि तत्त्रितयम्‌ ॥228॥
अन्वयार्थ : उक्त शंका ठीक नहीं है, क्योंकि यहां पर अनेकान्त बलवान है सर्वथा एकान्त नहीं । इसलिये अनेकान्त पूर्वक जो भी कथन किया जाता है, वह सब अविरुद्ध सिद्ध होता है किन्तु अनेकान्त के बिना किया गया कथन परस्पर में विरोधी ठहरता है ।
केवल अंशों का न उत्पाद होता है, न व्यय होता है और न ध्रौव्य होता है । इसी प्रकार अंशी का भी न उत्पाद होता है, न व्यय होता है और न ध्रौव्य होता है किन्तु इसके विपरीत अंशी का अंशरूप से उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य होता है, ऐसा यहां जानना चाहिये ।