
ननु चोत्पादध्वंसौ स्यातामन्वर्थतोऽथ वाङ्गमात्रात् ।
दृष्टविरुद्धत्वादिह ध्रुवत्वमपि चैकस्य कथमिति चेत् ॥229॥
अन्वयार्थ : एक ही पदार्थ में अन्वय से अथवा वचनमात्र से उत्पाद और व्यय भले ही हों, परन्तु ध्रुव भी वही पदार्थ होता है यह बात प्रत्यक्ष विरुद्ध होने से कैसे बन सकती है ?