सत्यं भवति विरुद्धं क्षणभेदो यदि भवेत्‌ त्रयाणां हि ।
अथवा स्वयं सदेव हि नश्यत्युत्पद्यते स्वयं सदिति ॥230॥
क्वापि कुतश्चित्‌ किञ्चित्‌ कस्यापि कथञ्चनापि तन्न स्यात्‌ ।
तत्साधकप्रमाणाभावादिह सोऽप्यदृष्टान्तात्‌ ॥231॥
अन्वयार्थ : यदि उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य इन तीनों में क्षण-भेद माना जाय तो पूर्वोक्त कथन में विरोध जा सकता है अथवा स्वयं सत्‌ ही नष्ट होता है और सत्‌ ही उत्पन्न होता है ऐसा माना जाय तो इन तीनों का एक वस्तु में रहना विरोध को प्राप्त हो सकता है, किन्तु यह बात त्रिकाल में किसी भी पदार्थ के किसी भी हालत में सम्भव नहीं है, क्‍योंकि न तो इसका साधक कोई प्रमाण ही है और न कोई ऐसा दृष्टान्त ही है जिससे कि उसकी सिद्धि को जा सके । क्योंकि इसका साधक कोई प्रमाण नहीं पाया जाता है और न कोई दृष्टान्त ही मिलता है । हम देखते हैं कि मृत्ति-पिण्ड घटरूप होकर भी मिट्टीरूप बना रहता है इससे उत्पादादि तीनों एक ही पदार्थ में होते हैं, यह बात सिद्ध होती है ।