+ गाथा २-१० -
बलिहारी गुरु अप्पणइं दिउ हांडी सय वार ।
माणस हुंतउं देऊ किउ करंत ण लग्गइ वार ॥2॥
अन्वयार्थ : उन गुरु की सौ बार बलिहारी है जिन ने देह को छोड़ दिया, अपनी आत्मा को मनुष्य से देव किया और ऐसा करने में समय नहीं लगाया ।