आभुंजंतउ विसयसुहु जे णवि हियइ धरंति ।
ते सासयसुहु लहु लहहिं जिणवर एम भणंति ॥5॥
अन्वयार्थ :
विषय सुख को भोगते हुए भी जो अपने हृदय में उसको धारण नहीं करते
(उसमें सुख नहीं मानते)
, वे अल्पकाल में शाश्वत सुख प्राप्त करते हैं, ऐसा जिनवर कहते हैं ।