णवि भुंजंता विसयसुहु हियडइ भाउ धरंति ।
सालिसित्थु जिम वप्पुडउ णर णरयहं णिवडंति ॥6॥
अन्वयार्थ :
विषयसुख का उपभोग न करते हुए भी जो अपने हृदय मे उसको भोगने का भाव धारण करते हैं. वे नर बेचारे शालिसिक्ख मच्छ
(तंदुल मच्छ)
की तरह नरक में जा पहते हैं ।