ओयइं अडबड वडवडइ पर रंजिज्जइ लोउ ।
मणसुद्धइ णिच्चल ठियइ पाविज्जइ परलोउ ॥8॥
अन्वयार्थ : लोग आपत्ति के समय में अट्पट बडबडाते हैं तथा पर से रंजित हो जाते है, परन्तु उससे कुछ भी सिद्धि नहीं होती, अपने मन की शुद्धता से तथा निश्चल स्थिरता से जीव परलोक को (परमात्मदशा को) प्राप्त करता है ।