जोणिहिं लक्खहिं परिभमइ अप्पा दुक्खु सहंतु ।
पुत्तकलत्तहं मोहियउ जाव ण बोहि लहंतु ॥9॥
अन्वयार्थ :
जब तक यह आत्मा बोधि की प्राप्ति नहीं करता, तबतक स्त्री-पुत्रादिक में मोहित होकर दु ख सहता हुआ लाखों योनियों में परिभ्रमण करता है ।