अण्णु म जाणहि अप्पणउ घरु परियणु जो इट्ठु ।
कम्मायत्तउ कारिमउ आगमि जोइहिं सिट्ठु ॥10॥
अन्वयार्थ : हे जीव ! जिन्हें तू इष्ट समझ रहा है - ऐसे घर, परिजन और शरीर - ये यब पदार्थ तेरे से अन्य हैं, उन्हे तू अपना मत जान, ये सब बाह्य जंजाल कर्मों के आधीन हैं - ऐसा योगियों ने आगम में बताया है ।