मोक्खु ण पावहि जीव तुहुं धणु परियणु चिंतंतु ।
तोउ वि चिंतहि तउ वि तउ पावहि सुक्खु महंतु ॥12॥
अन्वयार्थ : हे जीव! तू धन और परिजन का चिन्तन करने से मोक्ष नहीं पा सकता, अत: तू अपने आत्मा का ही चिन्‍तन कर, जिससे तू महान सुख को पावेगा ।