घरवासउ मा जाणि जिय दुक्क्तयवासउ एहु ।
पासु कयंते मंडियउ अविचलु णीसंदेहु ॥13॥
अन्वयार्थ :
हे जीव ! उस धन-परिजन को तू ग्रहवास मत समझ, वह वो दुष्कृत्य का धाम है और वह यम का फैलाया हुआ फन्दा है - इसमें सन्देह नहीं ।