मूढा सयलु वि कारिमउ मं फुडु तुहुं तुस कंडि ।
सिवपहि णिम्मलि करहि रइ घरु परियणु लहु छंडि ॥14॥
अन्वयार्थ :
हे मूढजीव ! बाहर ये सब कर्मजाल है । प्रगट तुस
(भूसे)
को तू मत कूट । घर-परिजन को शीघ्र छोड़कर निर्मल शिवपद में प्रीति कर ।