मोहु विलिज्जइ मणु मरइ तुट्टइ सासु णिसासु ।
केवलणाणु वि परिणवइ अंबरि जाह णिवारु ॥15॥
अन्वयार्थ : जिसका मोह नष्ट हो जाता है, मन मर जाता है, श्वाच्छोस्वास छूट जाता है वह केवलज्ञानरूप परिणमता है और आकाश में उसका निवास हो जाता है ।