अथिरेण थिरा मइलेण णिम्मला णिग्गुणेण गुणसारा ।
काएण जा विढप्पइ सा किरिया किण्ण कायव्वा ॥20॥
अन्वयार्थ : अस्थिर, मलिन और निर्गुण - ऐसी काया से स्थिर, निर्मल तथा सारभूत (गुणवाली) क्रिया क्‍यों न की जाय ?