वरु विसु विसहरु वरु जलणु वरु सेविउ वणवासु ।
णउ जिणधम्मपरम्मुहउ मिच्छत्तिय सहु वासु ॥22॥
अन्वयार्थ : विष भला, विषधर भी भला, अग्नि या वनवास का सेवन भी अच्छा, परन्तु जिनधर्म से विमुख ऐसे मिथ्यादृष्टियों का सहवास अच्छा नहीं ।