सो णत्थि इह पएसो चउरासीलक्खजोणिमज्झम्मि ।
जिणवयणं अलहंतो जत्थ ण ढुरुढुल्लिओ जीवो ॥23॥
अन्वयार्थ : यहाँ चौरासी लाख योनियों के मध्य में ऐसा कोई प्रदेश बाकी नहीं रहा कि जहाँ जिनवचन को न पाकर इस जीव ने परिभ्रमण न किया हो ।