अप्पा बुज्झिउ णिच्चु जइ केवलणाणसहाउ ।
ता परि किज्जइ काइं वढ तणु उप्परि अणुराउ ॥24॥
अन्वयार्थ :
यदि तूने आत्मा को नित्य एवं केवलज्ञान स्वभावी जान लिया तो फिर हे वत्स ! शरीर के ऊपर तू अनुराग क्यों करता है ?