जसु मणि णाणु ण विफ्फुरइ कम्महं हेउ करंतु ।
सो मुणि पावइ सोक्खु णवि सयलइं सत्थ मुणंतु ॥25॥
अन्वयार्थ :
जिसके चित्त में ज्ञान का विस्फुरण नहीं हुआ है, तथा जो कर्म के हेतु
(पुण्य-पाप)
को ही करता है, वह मुनि सकल शास्त्रों को जानता हुआ भी सच्चे सुख को नहीं पाता ।