बोहिविवज्जिउ जीव तुह़ुं विवरिउ तच्चु मुणेहि ।
कम्मविणिम्मिय भावडा ते अप्पाण भणेहि ॥26॥
अन्वयार्थ :
बोधि से विवर्जित
(रहित)
हे जीव ! तू तत्त्व को विपरीत मानता है, क्योंकि कर्मों से निर्मित भावों को तू आत्मा का समझता है ।