हउं गोरउ हउं सामलउ हउं जि विभिण्णउ वण्णु ।
हउं तणु अंगउ थूलु हउं एउह जीव ण मण्णु ॥27॥
णवि तुहुं पंडिउ मुक्खु णवि णवि ईसरु णवि णीसु ।
णवि गुरु कोइ वि सीसु णवि सव्वइं कम्मविसेसु ॥28॥
णवि तुहुं कारणु कज्जु णवि णवि सामिउ णवि भिच्चु ।
सूरउ कायरु जीव णवि णवि उत्तमु णवि णिच्चु ॥29॥
पुण्णु वि पाउ वि कालु णहु धम्मु अहम्मु ण काउ ।
एक्कु वि जीव ण होहि तुहुं मेल्लिवि चेयणभाउ ॥30॥
णवि गोरउ णवि सामलउ णवि तुहुं एककु वि वण्णु ।
णवि तणु अंगउ थूलु णवि एहउ जाणि सवण्णु ॥31॥
हउं वरु बंभणु णवि वइसु णउ खत्तिउ णवि सेसु ।
पुरिसु णउंसउ इत्थि णवि एहउ जाणि विसेसु ॥32॥
तरुणउ बुड्ढ़उ बालु हउं सूरउ पंडित दिव्वु ।
खवणउ वंदउ सेवडउ एहउ चिंति म सव्वु ॥33॥
अन्वयार्थ : मैं गोरा हूँ, साँवला हूँ, विभिन्न वर्णवाला हूँ, दुर्बल हूँ, स्थूल हूँ - ऐसा हे जीव, तू मत मान ।
तू न पण्डित है न मूर्ख, न ईश्वर है न सेवक, न गुरू है न शिष्य - यह सब विशेषताएं कर्म-जनित हैं ।
हे जीव ! तू न किसी का कारण है न कार्य, न स्वामी है न सेवक, न शूर है न कायर, और न उत्तम है न नीच ।
हे जीव ! पुण्य-पाप, काल, आकाश, धर्म, अधर्म एवं काया - एक भी तू नही, चेतनभाव को छोड़कर ।
तू न गोरा है न श्याम, एक भी वर्णवाला तू नही है, दुर्बल शरीर या स्थूल शरीर वह भी तू नहीं है - ये तो सब कर्म-जनित है, तेरा स्वरूप उनसे भिन्न समझ ।
न मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण हूँ, न वेश्य हूँ, क्षत्रिय या अन्य भी मैं नहीं हूँ, उसी प्रकार पुरुष, नपुंसक या स्त्री भी मैं नहीं हूँ - ऐसा विशेष जान ।
मैं जवान हूँ, बूढा हूँ, बालक हूँ, दिव्य पण्डित हूँ, क्षपणक हूँ, वन्दक हूँ - ऐसा कुछ भी चिंतन तू मत कर ।