कम्महं केरउ भावडउ जइ अप्पणा भणेहि ।
तो वि ण पावहि परमपउ पुणु संसारु भमेहि ॥37॥
अन्वयार्थ : हे जीव ! यदि तू कर्म के भाव को आत्मा का कहता है तो परमपद को तू नहीं पा सकेगा, बल्कि संसार में ही भ्रमण करेगा ।