अप्पा मेल्लिवि णाणमउ अवरु परायउ भाउ ।
सो छंडेविणु जीव तुहुं झायहि सुद्धसहाउ ॥38॥
अन्वयार्थ : ज्ञानमय आत्मा के अतिरिक्त अन्य सब भाव पराये है, उन्हे छोड़कर है जीव ! तू शुद्ध स्वभाव का ध्यान कर ।