वण्णविहूणउ णाणमउ जो भावइ सब्भाउ ।
संतु णिरंजणु सो जि सिउ तहिं किज्जइ अणुराउ ॥39॥
अन्वयार्थ :
जो वर्ण से रहित, ज्ञानमय निज-स्वभाव को भाता है, संत है, निरंजन है, वही शिव है
(कल्याणरूप है)
, अत उसी में अनुराग करो ।